Uttarkashi Tunnel Rescue Operation: 15वें दिन भी मजदूरों को निकालने का Plan Fail

Uttarkashi Tunnel Rescue Operation: 15वें दिन भी मजदूरों को निकालने का Plan Fail

Uttarkashi Tunnel Rescue Operation Plan B: उत्तरकाशी में सिल्क्यारा की तरफ से जारी रेस्क्यू ऑपरेशन के रास्ते में आने वाली मुश्किलें और उसकी वजह से हो रही देरी की वजह से बचाव दल ने दूसरे विकल्प पर काम शुरू कर दिया है और पहले से तैयार Plan Bऔर Plan C को जमीन पर उतारना शुरू कर दिया है।

सिल्क्यारा की तरफ से पाइपलाइन डालने का काम पूरा होने के करीब है लेकिन इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि रेस्क्यू ऑपरेशन के 14वें दिन भी राहत कर्मी सुरंग में वहां तक नहीं पहुंच सके हैं जहां मजदूर फंसे हैं वजह साफ है कि वहां तक पहुंचने का रास्ता कठिनाइयों से भरा है कदम कदम पर लोहे के सरिए निकल रहे हैं।

जिसकी वजह से ड्रिलिंग का काम कई बार रोकना पड़ा आगे बढ़कर भी पीछे हटना पड़ा और कुछ घंटों का इंतजार दिनों में तब्दील होता नजर आ रहा है। दुनिया भर में सुरंग बनाने के एक्सपर्ट माने जाने वाले आर्नल डिक्स के मुताबिक अब ऑगर मशीन का इस्तेमाल नहीं हो सकता और जोख बहुत ज्यादा है।

ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले आर्नल ने यह भी साफ कर दिया कि ऑगर मशीन के सामने बहुत ज्यादा रुकावट हैं और इन रुकावट से ऑगर मशीन निपट नहीं सकती टूट चुकी है और अब ड्रिलिंग के लिए ऑगर मशीन का इस्तेमाल आगे नहीं होगा और ना ही कोई नई ऑगर मशीन मंगाई जाएगी।

सुरंग में फंसे मजदूरों तक पहुंचने का यह सफर चाहे जितना भी मुश्किल हो चाहे जितने रास्ते बदलने पड़े लेकिन बचाव दल की नजर सिर्फ मंजिल पर है उनका लक्ष्य मुसीबतों के चक्रव्यूह को भेद कर मजदूरों को सुरक्षित निकालना है यही वजह है कुछ रोज पहले जब मशीन के कंपन की वजह से सुरंग में मलबा गिरने की खबर आई तब से ही मजदूरों को निकालने के लिए दूसरे Plan पर भी तेजी से काम किया जा रहा है।

क्योंकि रेस्क्यू टीम भली भाती जानती है कि सुरंग में हैवी मशीन काम कर रही है जिसकी वजह से किसी भी पल कुछ भी हो सकता है इसी वजह से रेस्क्यू टीम ने मजदूरों को बाहर निकालने के लिए Plan B और Plan C भी तैयार रखा है Plan B के तहत एक नहीं बल्कि दो वर्टिकल ड्रिलिंग यानी सुरंग में ऊपर से दो छेद करने की तैयारी है।

पहली वर्टिकल ड्रिलिंग 90 मीटर की होगी जबकि दूसरी ड्रिलिंग 320 मीटर करने का Plan बनाया गया है इसके अलावा Plan C के तहत टनल के दूसरे छोर यानी डंडाल गांव की तरफ से भी खुदाई की जा रही है इसके लिए चट्टानों और पत्थरों को तोड़ने के लिए तीन ब्लास्ट तक किए जा चुके हैं।

मतलब अगर सिलक्यांरा की तरफ से किसी भी वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन रुका तो फिर वर्टिकल ड्रिलिंग और डंडाल गांव की तरफ से मजदूरों को निकालने का काम तेज कर दिया जाएगा हालांकि उत्तर काशी के सिल्क्यारा टनल में फसे मजदूरों को निकालने के लिए Plan B भी पूरी तरह से तैयार है।

Plan B के तहत वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए जिस सड़क को बनाया गया उस पर मशीन भेज दी गई यानी अगर सुरंग में रेस्क्यू के दौरान Plan A में कोई भी दिक्कत पेश आती है तो जल्द ही Plan B शुरू कर दिया जाएगा।

हालांकि Plan B के तहत सुरंग में वर्टिकल ड्रिलिंग यानी ऊपर से छेद करके मजदूरों तक पाइपलाइन बिछाने के काम में 10 से 15 दिन का वक्त और लग सकता है जबकि Plan C में टनल के दूसरे छोर यानी डंडाल गांव की ओर से पहाड़ तोड़कर मजदूरों तक पहुंचने में 35 से 40 दिन का वक्त भी लग सकता है।

वैसे Plan B और Plan C पर काम किया जा रहा है लेकिन इसको उस वक्त इस्तेमाल किया जाएगा जब Plan A यानी सिलक्यांरा की तरफ से जारी रेस्क्यू ऑपरेशन किसी भी वजह से रोकना पड़े या फिर इसमें ज्यादा मुश्किलें आ रही हो अभी तक सिलक्यांरा की तरफ से ड्रिलिंग का काम तेजी से चल रहा है।

लेकिन बार-बार आने वाली बाधा और ऑपरेशन में होने वाली देरी की वजह से बचाव दल अब दूसरे विकल्प की तरफ भी देखने लगे हैं और उन पर काम कर रहा है लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि सिल्क्यारा की तरफ से रेस्क्यू ऑपरेशन में कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती है।

बचाव दल को पूरी उम्मीद है कि सिल्क्यारा की तरफ से मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया जाएगा सिल्क्यारा की तरफ से ड्रिलिंग के दौरान ऑगर मशीन के सामने कई बार सरिया और स्टील के पाइप आ रहे थे जिसकी वजह से मलबे में आगे क्या है इसका पता लगाने के लिए सुरंग में रेस्क्यू टीम ने ग्राउंड पेनेट्रेशन रडार का भी इस्तेमाल किया यह एक ऐसी तकनीक है जिससे यह पता चलता है कि जमीन के अंदर क्या छिपा है।

ये एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिए किसी चीज या ढांचे को छुए बगैर ही उसके नीचे मौजूद धातु पाइप या दूसरी चीजों की पहचान की जा सकती है इसकी मदद से 8 से 10 मीटर की दूरी तक चीजों का आसानी से पता लगाया जा सकता है इसमें जमीन के नीचे छिपी चीजों का पता लगाने के लिए रेडियो तरंगों का इस्तेमाल होता है मतलब यह एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिए जमीन या फिर दीवार के आर पार देखा जा सकता है।

रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल विशेषज्ञों के मुताबिक जितने दिन बीतते जाएंगे मुश्किलें उतनी बढ़ सकती हैं क्योंकि वहां पहाड़ की मिट्टी बेहद भुरभुरी है और डर यह है कि भारी भरकम मशीनों के चलने से होने वाली कंपन की वजह से कहीं सुरंग में और मलबा ना गिर जाए इसलिए बचाव दल ने देर ना करते हुए हर उस विकल्प पर काम तेज कर दिया है जिसके जरिए मजदूरों को जल्द से जल्द बाहर निकाला जा सके।

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