Israel Hamas War: दुनिया भर में कैसे बढ़ा क़तर का दबदबा

Israel Hamas War: क़तर ने कैसे करवाया इसराइल-हमास युद्ध को

Israel Hamas War दुनिया भर में कैसे बढ़ा क़तर का दबदबा: महज 27 लाख की आबादी वाला एक छोटा सा देश मध्यपूर्व के साथ साथ दुनियाभर में अपना कद बढ़ाता जा रहा है। पिछले कुछ सालों में इस देश ने अपनी कूटनीति का लोहा सारी दुनिया में मनवा लिया है। इस देश का नाम है कतर।

आज दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश है जो एक मध्यस्त के तौर पर कतर का मुकाबला कर सके। इसराइल और हमास के बीच चार दिन की युद्धविराम की खबर ने उम्मीदें तो बढ़ा दी हैं कि शायद आने वाले दिनों में इस युद्ध से पैदा हुए मानवीय संकट से निपटा जा सकेगा। दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के तहत हमास चार दिनों में गजा से 50 बंधकों को रिहा करेगा और इसराइल 150 फलस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा।

यह कतर की मध्यस्थता का ही नतीजा है कि आखिरकार दोनों पक्ष चार दिन के युद्धविराम और बंधकों की रिहाई पर राजी हो गए। हमें यह भी याद रखना होगा कि कतर एक ऐसा देश है जिसके संबंध इसराइल और हमास दोनों से हैं । साल 2012 में हमास ने दोहा में अपना राजनीतिक कार्यालय खोला था। माना जाता है कि हमास के कई शीर्ष नेता दोहा में ही रहते हैं।

पिछले कुछ सालों के उदाहरणों पर नजर डालें तो लगता है कि कतर ने मध्यस्थता करने या बातचीत में मदद करवाने में महारत हासिल कर ली है। इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण साल 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच कतर की राजधानी दोहा में हुआ शांति समझौता था, जिसके तहत फैसला लिया गया कि अमेरिका अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला लेगा। कतर ही वह देश था जिसने साल दो हज़ार 13 में तालिबान को अपने देश में राजनीतिक कार्यालय खोलने की इजाजत दी।

कतर की मध्यस्थता की एक मिसाल इस साल सितंबर में देखी गई, जब उसकी मदद से एक हाई प्रोफाइल कैदियों की अदला बदली हुई, जिसमें पांच अमेरिकी कैदियों और पांच ईरानी कैदियों को रिहा किया गया। इसी साल अक्टूबर में कतर की मध्यस्थता से हुए समझौते के तहत रूस चार यूक्रेनी बच्चों को उनके परिवारों को लौटाने के लिए मान गया। कतरी मध्यस्थता ने दारफुर में दोहा शांति समझौते तक पहुंचने, इरीट्रिया के जिबूती के युद्ध के कैदियों की रिहाई, सीरिया में बंधकों को रिहा करने और लेबनान में राष्ट्रपति पद के संकट को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कतर को लेकर जामिया मिलिया इस्लामिया के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रेजलूशन में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ। प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं कि किसी भी मध्यस्थता के लिए जरूरी है कि मध्यस्थ न्यूट्रल या तटस्थ हो और दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो। डॉक्टर मिश्रा कहते हैं कि कतर के ऊपर कोई निश्चित एजेंडा रखने या किसी एक पक्ष के साथ चयनात्मक होने का कोई ऐतिहासिक बोझ नहीं है। कतर अच्छे इरादों वाला एक तटस्थ मध्यस्थ रहा है और बातचीत के लिए शत्रु पक्षों को साथ लाने में रणनीतिक रूप से अच्छी स्थिति में है।

अनिल त्रिगुणायत जॉर्डन और लीबिया में भारत के राजदूत के रूप में काम कर चुके हैं। उन्होंने भारत के विदेश मंत्रालय के वेस्ट एशिया डिवीजन में भी काम किया है। वह कहते हैं, सबसे अहम बात ये है कि अमेरिका का एक बहुत बड़ा बेस कतर में है। जहां तक प्रतिव्यक्ति आय का सवाल है, कतर इस क्षेत्र का सबसे अमीर देश है। कतर में प्रति व्यक्ति आय 1,48,000 डॉलर है और उसके पास विशाल गैस भंडार है।

कतर की मदद से अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा समझौता हुआ। इस बातचीत में जब भी कोई मुश्किलें आई तो कतर ने मदद की और यही वजह है कि अमेरिका ने कतर को एक गैर नैटो अलाई का दर्जा दिया। अनिल त्रिगुणायत कहते हैं कि जहां तक मध्यपूर्व की बात है तो कतर शुरू से ही मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करता रहा है। खुद को मध्यस्थता करवाने में माहिर कतर को लेकर अहम सवाल यह है कि क्या अब कतर का दबदबा वैश्विक पटल पर बढ़ जाएगा।

पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत कहते हैं कि जब तक कतर के अमेरिका से अच्छे रिश्ते हैं, उसके प्रभाव में कोई कमी नहीं आएगी। साथ ही वह इस बात का भी जिक्र करते हैं कि सऊदी अरब जिसने एक समय पर कतर पर ब्लॉकेड लगाया था, आज उसी सऊदी अरब से कतर के करीबी रिश्ते हैं। डॉ। प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं कि मध्यपूर्व कई मूक क्रांतियों के शिखर पर है और आने वाले वक्त में कई ज्यादा संघर्ष उभरने की संभावना है। डॉक्टर मिश्रा के मुताबिक वैश्विक इरादे वाली एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा, छवि और वैधता के एजेंडे के साथ कतर की स्थिति अधिक शक्तिशाली होगी।

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